Tuesday, May 26, 2009

Hindi Poem on India Pakistan Partition

आंधी देखि थी उठती, भाई-भाई के प्यार में।
तक्र्रार हुई थी, मर-मार हुई थी, यार-यार की यारी में।

सिख मरा, मुसलमान मरा, हिंदू भी ना बच पाया।
धरम-धरम के नाम पे लार्रते, धरम का मतलब न कोई समझ पाया।

धरम बचाने करम कमाने, लार्रे इक-दूजे से यह।
न धरम बचा, न करम किया, किया भावना का भी सफाया।

दूजे इनकी दूरी को देख, फूले नहीं समाते थे।
कभी बहकाकर, कभी डराकर, आग में घी डलवाते थे।

यह आग जली, सालों जली, बहुत घरों को इसने जलाया।
आज़ादी के शुभ अवसर पर, इसने अपना रंग दिखलाया।

पाकिस्तान बना, हिन्दुस्तान बटा, सिखिस्तान की भी थी हुई अपील।
भारत माँ के अंग कटे थे, कुछ यहाँ मील तो कुछ वहां मील।

घर गवाया, यार गवाए, छूटा अपना प्यारा गाऊँ।
भारत माँ के आँचल की थी, बटी वोह गहरी असीम छाओं।
भारत माँ के आँचल की थी, बटी वोह गहरी असीम छाओं।

- इन्द्रपाल सिंह धामी, फरवरी 1999

1 comment:

  1. I couldn't agree more with the ideas presented. All heinous things were done in the name of religion. It was communalism in the guise of religion.
    Living together for more than a millennia we shared the same language, culture, history and values. But vested interests of a few individuals caused a damage beyond repair. It also shows how dangerous religious radicalization is.

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